समुद्री प्रदूषण
प्रदूषण का अंतिम गर्त समुद्र है समुद्र में ये प्रदूषक या तो सीधे अपशिष्ट के रूप में डाल दिए जाते है या जल धाराओं नदियों नहरों के द्वारा पहुंचते है और समुद्री जल का अधिकांश प्रदूषण समुद्र तट है.
जहा बड़े शहर बन्दर गाहा तथा औधोगिक केंद्र स्थापित है जैसे महा सगरो समुद्र ज्वरदानो लवणों दलदलों तथा अनन्य सामान जल निकायों का प्रदुषण समुद्री अथवा महासागरी प्रदुषण कहलाता है .
भारत की कुल जनसँख्या का २५ प्रतिशत भाग समुद्र तट रेखा पर रहता है और वह समुदी संसाधन पर ही निर्भर करता है वह पर पाय जाने वाले प्रदूषक बहुत प्रकार के होते है जैसे जल मॉल शहरी अपशिष्ट ओधोगिक और लघु उधोग प्रकिरियो के दौरान अपशिष्ट ऊष्मा तेल छितराओ एवं समुद्री पोटो से निकले बहिस्राव जलपोत उधोग से निकले तेल और ग्रीश से वहार वर्ष लगभग २१० मिलियन गैलन पेट्रोलियम पहुँचता है. जिसका कारण होता है.
तेल और प्राकृतिक ऋषव के द्वारा भी हर वर्ष लगभग १८० मिलियन गैलन तेल समुद्र में पहुँचता रहता है छित्रो से जो निम्तर क्वथनांक वाले रोमेटिक हाइड्रोकार्बन होते है उन्ही के कारन सबसे पहले बहुत सरे जलीय जीव और विशेष कर उनके लार्वा स्वरूप तुरंत मर जाते है छितरे तेल समुद्री पक्षियों और खास तौर पर डुबकी लगाने वाले पक्षियों के पैरो पर तथा कुछ समुद्री स्तनधारियों जैसे की सील आदि पर चिपक कर उन पर परत जमा लेते है तेल अवतरण से प्राणियों की प्राकृतिक तापरोधिता एवं उत्प्लावकता नष्ट हो जाती है और उनमे से अधिक या दुब जाते है या देह ऊष्मा की हानि से ठण्ड के कारन मर जाते है
उष्मीय प्रदुषण
उष्मी प्रदुषण तब होता है जब किसी जल निकाय का अथवा वायु मंडल की वायु का तापमान बाद जाता है या घाट जाता है इस कारण उस छेत्री का तापमान सामान्य स्तरों से हट जाता है यदि उष्णकटिधि महासागरों का तापमान मात्र एक डिग्री ही नीचे आ जय तो ऐसा परिवर्तित पर्यावरण कुछ प्रवालो एवं प्रवाल भीतियो के लिए घातक हो सकता है जल के बढ़ने से भी संवेदनशील जीवो पर भी ऐसी प्रकार के प्रभाव हो सकते है ताप प्रदुषण तब होता है जब अपशिष्ट ऊष्मा को जल निकाय के भीतर छोड़ दिया जाता है तप प्रदुषण के मानवीय कारणों में दो मुख्य बाते है
१ वनष्पति आवरण का घट जाना और दूसरे वाष्प जेनेरेटरों से गर्म जल को बहार छोड़ता है घातु प्रगालक ,संसाधन मिले ,पेट्रोलियम शिव कारखग्ने ,पेपर मिले ,खाद्य संसाधन पैक्ट्रिया तथा रसायन निर्माण सयंत्र आदि
२ चिरकालिप तप प्रदूषण की समस्या का समाधान इस बात में है की बिजली घरो में तथा अनन्य औधोगिक इकाइयों से निकलने वाले गर्म जल तथा बहिरीशव को किसी एक धारक इकाई में छोड़ा जय जहा ये डंडा हो सके डंठा होने के इन्हे जल निकायों में ही छोड़ा जाता है
मृदा प्रदुषण
सभी समस्त थल जीव जिसमे हम भी शामिल है भूमि की साथी परत अर्थत मृदा के साथ परस्पर क्रिया करते है क्योकि यही हमें जीवन की आधार भुत अवश्क्ताय है जैसे की भोजन आश्रम तथा वस्र अदि प्रदान करती है मृदा जो हमारा एक जीव नाशक करक है समस्त भूमि पर मात्र ६ इंच गहरी है हमारी भूमि सतह का अपकर्ष यु तो कुछ हद तक प्राकृतिक कारणों से भी होता मगर हम मनुष्य ऐसे तीन प्रकार से ख़राब करते है इसका उपयोग करके (कृषि तथा विकास क्रियाकलाप ) इसमें से चीजे बहार निकल कर (खनन तथा वनोन्मूलन )तथा इसके भीतर पदर्थ को डाल दिया जाता है
जैव विविधता की हानि
सतत बढ़ती जाती जनसँख्या के लिए कृषीय तथा विकास आवश्कताओ और उन्ही के साथ उसकी अभिलाषाओं तथा लिप्साओं पूर्ति भूमि प्रदान करने हेतु कितने ही बड़े बड़े क्षेत्रों से वन काट दिए जाते है जिससे प्राकृतिक वनष्पति एवं प्रणिता नष्ट होती जा रही है इंटरनेशनल यूनियन फॉर कांजवेर्शन ऑफ़ नेचर के अनुसार अनुमान लगाया गया है की सन २०५० तक लगभग ५०,००० पादप स्पीशीज विलुप्त हो जायगी या संकटपन स्तर तक पहुंच जायगी
मृदा अपरदन
यह वह प्रिक्रिया है जिसमें मृदा घटको का और विशेषकर ऊपरी मृदा के कणो का ढीला होना अलग अलग हो जाना तथा वहाँ से हटा लिया जाना शामिल है मृदा अपरदन दो साधनो तेज हवाओ तथा बहते पानी से होता है मगर ये दोनों करक तभी कार्य शील हो जाते जाते है जब भूमि सतह से आवरण समाप्त हो चूका होता है