पर्यावरण का अर्थ
पर्यावरण शब्द परि + आवरण से मिलकर बना है परि का अर्थ है चारों ओर और आवरण का अर्थ है घिरा हुआ। अर्थात पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ है चारों ओर से घिरा हुआ । जैसे नदी ,पहाड़, तालाब, मैदान, पेड़-पौधे, जीव-जंतु वायु वन मिट्टी आदि सभी हमारे पर्यावरण के घटक है। हम सभी इन घटको का दैनिक जीवन में भरपूर उपयोग करते है अर्थात हम इन घटको पर ही निर्भर है।
प्राकृतिक वातावरण
सभी प्राकृतिक वातावरण जैसे की भूमि, वायु, जल, पौधे, पशु हो। सामग्री कचरा, धूप, जंगल, हरियाली, खेत, खलिहान और अन्य सभी प्राकृतिक वस्तु को प्राकृतिक वातावरण कहा जाता है। हमारे आस पास के प्राकृतिक संसाधन की वजह से हमारा जीवन सम्पूर्ण होता है या यह कह सकते है कि हमारा जीवन बिना प्राकृतिक संसाधनों के असंभव है। प्रकृति का स्वस्थ होना मानव के जीवन का सबसे अहम भाग है। स्वस्थ वातावरण पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने में बहुत योगदान देता है।पृथ्वी पर सभी जैविक और अजैविक चीजों जैसे की पेड़, झाड़ियों, बगीचा, नदी, झील, हवा, धूप की किरण आदि शामिल है। स्वस्थ वातावरण प्रकृति के संतुलन को बनाए रखता है और साथ ही साथ पृथ्वी पर सभी जीवित चीजों को बढ़ने, पोषित और विकसित करने में मदद करता है। लेकिन आज के समय के अनुसार औद्योगिक क्षेत्र की उन्नति के परिणाम स्वरूप मानव निर्मित प्रदूषण को कई प्रकार से विकृत कर रहा है जो कि प्राकृतिक के संतुलन को बिगाड़ कर रख रही है। यदि कोई भी व्यक्ति प्रकृति के अनुशासन को खराब करते हैं तो ये पूरे वातावरण के माहौल को जैसे की वायु-मंडल, जलमंडल और स्थलमंडल को अस्तव्यस्त करती है। मानव निर्मित वातावरण इस पर्यावरण को काफी हद तक प्रभावित करता है जिसे हम सभी को पेड़ पौधे लगा कर बचना है और लोगों को वृक्ष लगाने के लिए उकसाना है।प्राकृतिक वातावरण को घटक संसाधन के रूप में उपयोग किया जाता है हालाँकि कुछ बुनियादी भौतिक जरूरतें और जीवन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए इंसान द्वारा इसका शोषण किया जाता है। पर्यावरण में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण आदि को रोकने के लिए कठोर से कठोर नियम लागू करना चाहिए और सभी आम जनता को इधर उधर अपशिष्ट डालने में रोक लगानी चाहिए।
पर्यावरण की परिभाषा
पर्यावरण की परिभाषा इस प्रकार है - जे.एस. रॉस के अनुसार= पर्यावरण या वातावरण वह वाह्य शक्ति है जोअस्तन धारी जिवो प्रभावित करती हैं।
डगलस एंव हालैण्ड के अनुसार = पर्यावरण वह शब्द है जो समस्त वाह्य शक्तियों ,प्रभावों और परिथतियों का सामूहिक रूप से वर्णन करता है जो जीवधारी के जीवन ,स्वभाव ,व्यवहार तथा अभिवृद्धि , विकास तथा प्रौढता पर प्रभाव डालता है ।
हर्स, कोकवट्स के अनुसार= पर्यावरण इन सभी बाहरी दशाओं और प्रभावों का योग है तो प्राणी के जीवन तथा विकास पर प्रभाव डालता है।
डॉ डेविज के अनुसार= मनुष्य के सम्बन्ध में पर्यावरण से अभिप्राय भूतल पर मानव के चारों ओर फैले उन सभी भौतिक स्वरूपों से है। जिसके वह निरन्तर प्रभावित होते रहते हैं।” “ पर्यावरण प्रभावों का ऐसा योग है जो किसी जीव के विकास एंव प्रकृति को परिस्थितियों के सम्पूर्ण तथ्य आपसी सामंजस्य से वातावरण बनाते हैं।
ए.बी.सक्सेना के अनुसार= पर्यावरण शिक्षा वह प्रक्रिया है जो पर्यावरण के बार में हमें संचेतना, ज्ञान और समझ देती है । इसके बारे में अनुकूल दृष्टिकोण का विकास करती है और इसके संरक्षण तथा सुधार की दिशा में हमे प्रतिबद्ध करती हैं।
उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है कि जो कुछ भी हमारे चारों ओर विद्यमान है तथा यह हमारी रहन-सहन दषाओं तथा मानसिक क्षमताओं को प्रभावित करता है, पर्यावरण कहलाता है। पर्यावरण में वे सभी परिस्थितियाँ भी आती हैं, जो हमारे जीवन पर प्रभाव डालती हैं। हमारा घर, मौहल्ला, गाँव, शहर सभी हमारे पर्यावरण के अंग हैं क्योंकि वे सभी हमारे जीवन पर प्रभाव डालते हैं। ‘पर्यावरण’ मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समाविष्ट हैं।
पर्यावरण एक व्यापक शब्द है। यह उन संपूर्ण शक्तियों, परिस्थितियों एवं वस्तुओं का योग है जो मानव को परावृत करती है तथा उसके क्रियाकलापों को अनुषासित करती है।
पर्यावरण के प्रकार
वर्तमान समय में मनुष्य प्रदूषण के प्रकार स्वयं प्रदूषण का स्त्रोत है, क्योंकि प्रकृति में कोई भी ऐसी विधि नहीं पाई जाती है जो कि मनुष्य के द्वारा निर्मित पदार्थों को अपघटित कर सके, और उन तत्वों को प्रकृति के चक्र में कर देवें। यह पदार्थ इसी रूप में पाये जाते हैं और जो भी वह क्षति पहुँचाना चाहते हैं, वह क्षति पहुँचा देते हैं या हानि उत्पन्न कर देते हैं, जब तक कि वह विस्तारित या तनुकृत न हो जावे अतः प्रदूषण निम्न प्रकार के होते हैं -
वायु प्रदूषण,
जल प्रदूषण
मिट्टी/मृदा प्रदूषण
समुद्री प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण
तापीय प्रदूषण
आणविकीय संकट
जैव प्रदूषण
ठोस अपषिष्ट प्रदूषण।
पर्यावरण के विभिन्न अंग
2. जल मण्डल (hydrosphere)- पृथ्वी का समस्त जलीय भाग जलमण्डल कहलाता है , जिसमें सभी सागर व महासागर सम्मिलित है । भूपटल के 71% भाग पर जल एंव 29% भाग पर थल का विस्तार है। पृथ्वी की समह पर क्षेत्रफल लगभग 51 करोंड वर्ग किलोमीटर है। जिसमें 36 करोंड वर्ग कि.मी. पर जल का विस्तार है।
3. वायु मण्डल (Atmosphere)- पृथ्वी के चारों ओर वायु का आंवरण है, जिसे वायुमण्डल कहा जाता है। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण वायु का यह धेरा पृथ्वी को जकड़े हुए है, और धरातल से इसकी ऊंचाई साधारणतः 800 किलोमीटर मानी जाती है, परन्तु खोज के पश्चात यह ऊंचाई 1300 किलोमीटर ऑकी गयी है। वायु मण्डल में भी अनेक परत होती है।
पर्यावरण के तत्व
पर्यावरण के तत्वों को दो समूहों में विभक्त किया जाता है। (अ) अजैव तत्व (Abiotic Elements) तथा (ब) जैव तत्व (Biotic Elements)। अजैव तत्वों में जलवायु, स्थल, जल, मृदा, खनिज एवं चट्टान तथा भौगोलिक स्थिति प्रमुख है। जैव तत्वों में पौधे और जीव-जन्तु प्रमुख है।
1. अजैव तत्व समूह
जलवायविक कारक (Climatic Factors)- सूर्य, प्रकाश एवं ऊर्जा, तापमान, हवा, वर्षा, आर्द्रता, वायुमण्डलीय गैस आदि।
स्थलजात कारक (Topographic Factors)- उच्चावच, ढाल, पर्वत, दिषा आदि।
जल स्रोत (Water Bodies)- सागर, झील, नदी, भूमिगत जल आदि।
मृदा (Soils)- मृदा रूप, मृदा-जल, मृदा-वायु आदि।
खनिज एवं चट्टानें (Rocks and Minerals)- धात्विक एवं अधात्विक खनिज, ऊर्जा खनिज एवं चट्टानें।
भौगोलिक स्थिति (Geographical Locations)- तटीय, मध्यदेषीय, पर्वतीय आदि।
2. जैव-तत्व समूह
इसमें वनस्पति, जीव-जन्तु, मानव एवं सूक्ष्म जीव आते है। पर्यावरण के जैव एवं अजैव तत्व समूह अपनी विशेषता के अनुसार पर्यावरण का निर्माण करते हैं। चूंकि ये आपस में गुंथे हुए हैं अत: इनमें होने वाले परितर्वनों का व्यापक प्रभाव पड़ता है।