पर्यावरण का अर्थ
पर्यावरण शब्द परि + आवरण से मिलकर बना है परि का अर्थ है चारों ओर और आवरण का अर्थ है घिरा हुआ। अर्थात पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ है चारों ओर से घिरा हुआ । जैसे नदी ,पहाड़, तालाब, मैदान, पेड़-पौधे, जीव-जंतु वायु वन मिट्टी आदि सभी हमारे पर्यावरण के घटक है। हम सभी इन घटको का दैनिक जीवन में भरपूर उपयोग करते है अर्थात हम इन घटको पर ही निर्भर है।
प्रस्तावना
पृथ्वी एक मात्र ऐसा ग्रह है जहाँ जीवन का होना ज्ञात है व्यापक शब्दो में पर्यावरण में जीवन से प्रभावित वह प्रत्येक चीज जिसमे भौतिक और सजीव दोनों कारक सामिल है भौतिक और सजीव कारको के बीच क्रिया ओर परस्पर क्रिया से संबंधो का एक तंत्र बनता है जिसे तंत्रिकातत्रं कहते है
पर्यावरण की अवधारणा
प्रत्येक जीवित जीव का एक विशिष्ट परिवेश अथवा माध्यम होता है जिसके साथ वह निरंतर परस्पर क्रिया करता है अपना भोजन प्राप्त करता है और जिसके प्राप्ती वह पुरा अनुकूलित रहता है हम सबसे पहले आरंभ करते है कि पर्यावरण क्या है पारि +आवरण से मिल कर पर्यावरण बनता है पारि का अर्थ होता है चारों ओर ओर आवरण का अर्थ होता है घिरा हुआ जिसे हम पर्यावरण कहते है पर्यावरण के अंतर्गत जल वायु थाल पादक जीव जँतु तथा अन्य जीव प्रकृति जीव में कोई भी जीव पर्यावरण में रहकर उसे प्रभावित करता है ओर वो खुद भी प्रभावित होता है किसी जीव के जीवन पर पर्यावरण के प्रभाव का सबसे बड़ा गुण पर्यावरणीय तत्व कि परस्पर क्रिया है
आइये उदाहरण के मध्याम से समझे
क्या आप ने एक तालाब में एक सर्प मछली के पर्यावरण को पहचान कर सकते है? उसके पर्यावरण में अजैविक घटक जैसे प्रकाश, तापमान और जल पर्यावरण जिसमे पोषक, आक्सीजन, अन्य गैसे तथा कारबनिक तत्व घुले रहते हैं
पर्यावरण कि संरचना
- स्थलमंडल
- जलमंडल
- वायुमंडल
- जैवमंडल
पर्यावरण के प्रकार
1)प्राकृतिक पर्यावरण
2)मानव संशोधित पर्यावरण
3)मानव निर्मित पर्यावरण
1)प्राकृतिक पर्यावरण
प्राकृतिक पर्यावरण के अंतर्गत वह सभी वस्तु आती है जो प्राकृतिक के द्वारा प्रदान कि गाई हो जैसे कि महासागर ,झील ,तालाब, वन, घास के मैदान, पशु पक्षी मनुष्य इतयदी
2) मानव संशोधित पर्यावरण
इसके अंतरगत वह सभी वस्तु आती है जो प्राकृतिक ओर मानव दोनों का मिषण होता है जैसे बागवानो वृक्षारोपण आदि
3)मानव निर्मित पर्यावरण
प्राकृतिक को नुकसान पहुंचा कर मानव द्वरा बनाया गया वातावरण को जैसे उद्योग, शहर, आदि मनव निर्मित वातावरण कहते है
जीवन के लिए पर्यावरण का महत्व
हमारे जीवन में पर्यावरण जीवन का एक अगं है इसमें वायु जिससे हम सास लेते हैं भोजन और जल जिन्हें हम ग्राहण करते हैं हम भूमि का उपयोग फसले उगाने के लिए करते हैं मृदा पादपो कि वृद्रि के लिए आवश्यक पोषक प्रदान करती है भूमि प्राकार किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले मृदा प्रकारो का निर्धारण करता है और स्वयं मृदा एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होते हैं कुछ मृदाएं पोषको से समृद्ध होती है जलवयु तथा अल्पकालिक मौसम परिवर्तन कि पहचान मुख्य रूप से पवन तापमान दाब और वर्षा से होती है और इसका निर्धारण वायु मडल के गुणों से होता है इसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते हैं वायु मनणल कि वायु सजीवो को अक्सीजन प्रदान करती है जिसके बगैर अधिकांश जीवो का जीवन खतरे में पड जाएगा
मानव पर्यावरण संबंध
यदि हम मानव सभयता को देखे तो दो भिन्न स्थित दिखाई देती है पहली स्थित यह है कि मनुष्य ने विद्यमान पर्यावरण स्रितिया के साथ सामंजस्य के अनुकूल कर लिया जैसे जैसे मनव सभयता का विकास हुआ और आम जन ने प्रकृति को वश में करने के लिए ग्यान और कुशलता को विकसित कर लिया है
वन अपरूपण कारण और परिणाम
वन अपरोपण का आशय स्थानीय वनो से सफाया करना अथवा उन्हें नष्ट करने से है ये आकलन किया गया है की वर्तमान में स्थानीय वनाच्छादन पृथ्वी की भूसतह का लगभग २१ % भाग बनता है वोर्ल्ड रिसोर्स इंस्टुटें (विश्व संसाधान संस्थान )के अनुसार वन अपरूपण की भूमि उपयोग समस्याए में से गंभीर समस्या में से एक माना जाता है दूसरा प्रमुख सरोकार वन आपरो[पण का लगभग अधिकांश भाग आद्री वनो और उष्ण कटबंधी जंगलो होता है यह पूर्व अनुमान लगाया गया है की यदि इसी दर से वन अपरोपण होता रहा तो वर्ष २०५० तक अमेजन और जायरे बेसिन संरक्षित वनो और अभ्यारणों के संरक्षण क्षेत्रों के अतरिक्त सभी आदर्य उष्ण कटिबंधी अध्र्य वन लुप्त हो सकते है भारत में कुल भौगोलिक छेत्रीय
दूषित हमारा वातावरण हो रहा है
लोगो का भ्रष्टा आचरण हो रहा है
कोयल कि गीत कौआ सिखाते
हँस में दोष बकुले लगाते
दूषित हमारा वातावरण हो रहा है